भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग द्वितीय ज्योतिर्लिंग है। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्रप्रदेश के कृष्णा जिले में स्थित है।
यह मंदिर कृष्णा नदी के तट पर शैल पर्वत पर स्थित है इसे श्री शैल पर्वत भी कहा जाता है। सभी शक्तिपीठों में से महा शक्तिपीठ मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर को अधिक पवित्र माना गया है। यह हैदराबाद से 250 किलोमीटर दूर कुरनूल के पास में स्थित है।
ग्रंथों के अनुसार हिंदुओं के लिए श्री शैल पर्वत का अधिक महत्व है और इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है। इस पर्वत पर जो व्यक्ति भगवान शिव की पूजा अर्चना करता है वह अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फल पाता है। और भगवान शिव की कृपा से उसके सारे दुख नष्ट हो जाते हैं। उस व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं शीघ्र ही पूर्ण होती है। शिव पुराण के अनुसार यह बताया गया है कि मल्लिका का अर्थ मां पार्वती और अर्जुन भगवान शिव को कहा गया है।
भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से मल्लिकार्जुन का दूसरा स्थान है। इन 12 जगहों पर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए हैं इसलिए इसे ज्योर्तिलिंग में कहा जाता है। हिंदुओं का यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर में मल्लिकार्जुन भगवान शिव के रूप में विराजमान है। मल्लिकार्जुन ज्योर्तिलिंग मंदिर गर्भगृह बहुत ही छोटा है जिसकी वजह से यहां भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है। मंदिर में एक से अधिक व्यक्ति नहीं जा सकते जिसके लिए यहां भक्तों को लंबी कतार में खड़े होकर प्रतीक्षा करनी पड़ती है तब भगवान शिव का दर्शन मिलता है।
इस प्राचीन मंदिर की तमिल संतो ने स्तुति गायी है ऐसा कहा जाता है हिंदू धर्म के स्कंद पुराण में श्रीशैलम या श्रीशैल ज्योतिर्लिंग का वर्णन किया गया है। जब जगतगुरु आदि शंकराचार्य जी ने पहली बार इस मंदिर की यात्रा की तब तब उन्होंने यहां शिव नंद लहरी की रचना की थी। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर के पास में ही एक जगदंबा माता का मंदिर भी है। ऐसा कहा जाता है यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक माना गया है माता का यह मंदिर सती का स्वरूप ब्रह्मरांबिका के रूप में विख्यात है। पुराण के अनुसार ऐसा कहा गया है जब माता सती ने यज्ञ में कूदकर अपने प्राणों की आहुति दी थी तब भगवान शिव क्रोधित होकर प्रचंड रूप में माता सती के मृत शरीर को उठाकर पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगाने लगे उस समय जहां-जहां माता की शरीर का अंग गिरा वह स्थान शक्तिपीठ कहलाया जाने लगा। जिस स्थान पर माता सती की गर्दन गिरी वही स्थान पवित्र और पावन शक्तिपीठ माना गया है।
भगवान शिव और पार्वती के 2 पुत्र हैं जिनका नाम गणेश और कार्तिकेय है एक दिन भगवान गणेश और कार्तिकेय विवाह के लिए आपस में झगड़ रहे थे और झगड़ते-झगड़ते अपने माता पिता के पास झगड़ा सुलझाने के लिए गए, भगवान शिव और पार्वती जी ने झगड़े का कारण पूछा तब उन्होंने बताया कि पहले किसका विवाह होगा इसी विषय में झगड़ा हो रहा है। यह सुनकर माता पार्वती ने झगड़े के समाधान के लिए दोनों भाइयों से कहां की जो पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके वापस आएगा उसी का विवाह पहले होगा, माता पार्वती के द्वारा ऐसा सुनकर कार्तिकेय जी ने पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल दिए
कार्तिकेय का वाहन मोर है और गणेश जी का वाहन चूहा है लेकिन भगवान गणेश बहुत ही बुद्धिमान थे। जब कार्तिकेय परिक्रमा के लिए वहां से चले गए तब गणेश ने कुछ विचार किया उसके बाद फिर अपने माता पिता से एक स्थान पर बैठने का आग्रह किया। उसके बाद अपने माता पिता का 7 बार परिक्रमा किया जिससे पृथ्वी की परिक्रमा से मिलने वाले फल की प्राप्ति की और शर्त जीत गए।
उनकी यह बुद्धि देखकर भगवान शिव और पार्वती बहुत ही प्रसन्न हुए और गणेश जी का विवाह कराया पृथ्वी की परिक्रमा पूरा कर जब कार्तिकेय जी वापस आए तो गणेश जी का विवाह देखकर उन्हें बहुत दुख हुआ। तब उसी समय कार्तिकेय जी ने अपने माता-पिता के चरण छू कर वहां से चले गए। जब माता पार्वती और भगवान शिव को पता चला कि कार्तिकेय जी नाराज हो कर चले गए तब उन्होंने नारद जी को मनाने के लिए भेजें और कहां की कार्तिकेय जी को मना कर घर वापस लाएं। क्रौंच पर्वत पर नारद जी कार्तिकेय जी को मनाने पहुंचे और मनाने का बहुत प्रयत्न किया। कार्तिकेय जी ने नारद जी की एक न सुनी अंत में निराश होकर नारद जी वापस चले गए और माता पार्वती और भगवान शिव से सारा वृत्तांत सुनाया।
यह सुन माता पार्वती भगवान शिव के साथ क्रौंच पर्वत पर कार्तिकेय जी को मनाने पहुंची। माता पिता के आगमन को सुन कार्तिकेय जी 12 कोस दूर चले गए तब भगवान शिव वहां पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए और तभी से वह स्थान मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग से प्रसिद्ध हुआ। ऐसा कहा जाता है कि वहां पर पुत्र स्नेह में माता पार्वती हर पूर्णिमा और भगवान शिव हर अमावस्या के दिन वहां आते हैं।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग भारत के आंध्र प्रदेश में शैल पर्वत पर स्थापित है। इस विशाल पर्वत को दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है। शैल पर्वत से निकलने वाली कृष्णा नदी के तट पर मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग स्थित है मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का वर्णन महाभारत, शिव पुराण आदि धार्मिक ग्रंथों में किया गया है। जिसके अनुसार यहां दर्शन करने मात्र से अभीष्ट फल मिलता है।
पुराणों के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि शैल पर्वत पर सच्ची श्रद्धा से पूजा अर्चना करने से अश्वमेघ के बराबर फल की प्राप्ति होती है और यहां आने मात्र से सभी भक्त के सभी कष्ट निवारण हो जाते है।
• यह ज्योतिर्लिंग भगवान शिव की एक अलग रूप राजा दक्ष की यज्ञ में दीपक के रूप में उसका स्वागत किया था।
• यहां पर माता पार्वती ने भगवान शिव को मालकार्जुन नाम से पुकारा था इसके बाद ही यह ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन नाम से प्रसिद्ध हुआ।
• मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का गुफा रूप में होता है इस गुफा में भगवान शिव के ब्रज कान्त श्री कृष्ण जी का भी प्रतिमा स्थित है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग को पूजने के लिए सबसे पहले शुक्ल पक्ष की अमावस्या को नीलकंठी मंदिर जाना चाहिए। इसके बाद यहां पर नीलकंठी अद्यात्मिक पीठ यहां के पुजारी ब्राह्मण से दिल्ली माता के प्रतिमा को प्राप्त करके श्रीलक्ष्मीपुरी ब्रज में जाकर उसे प्राप्त करके इसका पूजन करना चाहिए।
इस ज्योतिर्लिंग की पूजा में जिन्दगी भर अध्यात्मिक पापों से मुक्ति मिलती है। इसके बाद मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की यात्रा करके श्रीशैल में जाकर उनका दर्शन करना चाहिए। इसके बाद यात्रा को खत्म करते हुए द्वारका जाकर महालक्ष्मी जी के मंदिर में जाकर उनका दर्शन करना चाहिए।
इस ज्योतिर्लिंग की पूजा से समस्त समस्याएं दूर हो जाती हैं।